इस्लाम पर एक महत्वपूर्ण जानकारी -
एक शब्द का मतलब पता चला - "इबादत".
आम तौर से इबादत का अर्थ हम पूजा, अर्चना, ध्यान या भक्ति जैसा कुछ समझते हैं. पर इबादत शब्द की उत्पत्ति है "अब्द" से...अब्द यानि गुलाम...इबादत यानि गुलामी. (अब्दुल्लाह - अल्लाह का गुलाम, अब्दाली - अली का गुलाम)
यह इबादत यानि गुलामी इस्लाम की सेंट्रल थीम है. आप अल्लाह की भक्ति नहीं, इबादत यानि गुलामी करते हैं. भक्त का दर्जा उसकी भक्ति से ऊपर उठता है. जैसे जैसे भक्त अपनी भक्ति में लीन होता जाता है, वह ईश्वर के उतने करीब होता जाता है. भगवान हनुमान जी प्रभु श्रीराम की भक्ति मात्र से स्वयं पूज्य हो जाते हैं. पर इस्लाम में अल्लाह से आपका रिश्ता वैसा नहीं होता. इस्लाम में अल्लाह से एक खौफ़ का रिश्ता होता है, प्रेम और भक्ति का नहीं.
इस्लाम की मार्केटिंग टेक्निक में बताते हैं, इस्लाम का अर्थ होता है शांति. यह सरासर गलत और झूठ है. इस्लाम का अर्थ है "Submission" यानि गुलामी. यह इस्लाम का शाब्दिक अर्थ ही नहीं, उसकी मूल भावना भी है.
इस्लाम में सैकड़ों वर्जनाएँ हैं...यह हलाल है, वह हराम है. आप किसी मुस्लिम से बात करेंगे तो आप अक्सर एक जुमला सुनेंगे - This is not permitted in Islam...
इस्लाम में सही और गलत, नैतिकता की परिधि में निर्धारित नहीं होता. Permitted और Not permitted के आधार पर तय होता है. आपको विवेक पर निर्णय नहीं लेने होते...एक गुलाम की तरह बता दिया जाता है कि किस बात की इजाजत है और किस बात की मनाही है. उसके पीछे कोई नैतिक आधार नहीं होता. सर ढंके बिना गैर मर्द के सामने आने की मनाही होती है पर ससुर के द्वारा बहु के साथ सेक्स की इजाजत मिल जाती है. शराब पीना हराम होता है पर गाँजा और अफीम चल जाती है. सब कुछ अर्बिट्ररी है...जैसा मालिक की मर्जी, वैसा गुलाम को हुक्म.
इस्लाम इसी गुलामी की वैश्विक मल्टी-लेवल मार्केटिंग है. स्लेवरी का एमवे है... गुलाम बनो, और गुलाम बनाओ. जिस गुलाम ने जितने ज्यादा गुलाम बनाये, उसका दर्जा उतना ऊँचा. अरबी सबसे पुराने गुलाम, वे उतने बड़े...तुर्की उनके बाद गुलाम बने, वे उनके नीचे. सबसे नीचे और घटिया हिंदुस्तानी ग़ुलाम जो सबसे ताजा ताजा गुलाम बने. इसीलिए इस हायरार्की में हिंदुस्तानी मुस्लिम सबसे घटिया और नीच गिने जाते हैं जिनकी कोई औकात नहीं गिनी जाती....उनके पास गुलाम बनाने के लिए और कोई नहीं बचा. उनमें भी पाकिस्तान में पंजाबियों का पलड़ा भारी गिना जाता है क्योंकि उन्होंने सिंधियों, बंगालियों और बलूचों को गुलाम बनाया. इस गुलामी की सबसे बड़ी ट्रेजेडी यही है कि इससे निकलने की कोशिश कोई नहीं करता...कोई गुलाम खुद को आजाद करके अपनी जड़ों से, अपने पूर्वजों की संस्कृति से नहीं जुड़ता... बस वह और किसी को गुलाम बनाकर गुलामी की इस हायरार्की में अपना दर्जा कुछ ऊपर कर लेना चाहता है।
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